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| जागरण संवादी में अलग-अलग विषयों पर चर्चा की गयी. |
शुचि सिंह कालरा ने कहा कि भारतीय रोमांस में बदलाव के लिए हम लेखक भी लिख रहे हैं और रूढ़िवादी भारतीय रोमांस में बदलाव आयेगा.
अनामिका मिश्र ने अपने विचार रखते हुए कहा कि भारतीय समाज आज भी अपनी संस्कृति के रूट से जुडी है, मगर आज की पीड़ी रोमांस के प्रति काफी खुल रही है और धीरे-धीरे भारतीय रोमांस में परिवर्तन आ रहा है.
लखनऊ में हों और यहां की खाने की बात ना हो ऐसे कैसे हो सकता था. अवध का स्वाद सत्र के दौरान पंकज भदौरिया, पुष्पेश पन्त, अली खां महमूदाबाद ने आशुतोष शुक्ल से अवध के खाने के इतिहास के बारे विस्तार से बात की.
पुष्पेश पन्त ने कहा कि फ़ैजाबाद का खाना असल में अवध का खाना है क्योंकि लखनऊ नवाबों की नगरी बनने से पहले फैजाबाद में था. फैजाबाद के खाने में नवाबी खाने के साथ–साथ देहात की महक भी है. अली खां महमूदाबाद ने अपने विचार रखते हुए कहा कि असली खाना कोरमा और रोटी है बाकी सब नवाबों के नखरें हैं. उन्होंने आगे कहा कि खाने को मजहबी या धार्मिक नाम नहीं देना चाहिए। खाना सिर्फ खाना होता है. उसे हिन्दू और मुस्लिम खाने का नाम नहीं देना चाहिए. पंकज भदौरिया ने कहा कि अवध में छोटे-छोटे ताल्लुकों में तरह-तरह के ज़ायके मिलेंगे. मगर जो अवध के घरों में रोजाना बनता है असल में अवध का खाना वही है.
अदब का लखनवी स्कूल सत्र में हसन कमाल, अनीस अशफाक और कमर जहां, शाहनवाज कुरैशी के सामने थे. अनीस अशफाक ने कहा कि लखनऊ शहर ने उच्च श्रेणी के कवि देश को दिए हैं. इस शहर के स्कूल का साहित्य अदब का है. कमर जहां ने कहा कि लखनऊ आज से नहीं पहले से काफी आगे और फलाफूला है.
वहीं हसन कमाल ने लखनऊ स्कूल के बहाने अपनी बात रखते हुए कहा कि उर्दू और अवध एक दूसरे के पर्यावाची हैं मगर यहाँ उर्दू को मुसलमानों की जबान करार दिया गया है. मदरसे में पढ़ने वाले को यह नहीं मालूम की प्रेमचंद, कृष्ण चन्द्र, राजेन्द्र सिंह की उर्दू क्या थी. उनकी उर्दू काफी खूबसूरत थी और मेरा मानना है कि उर्दू के लिए सरकारी स्कूलों के दरवाजे खुलने चाहिए.
फिल्म अभिनेता आशीष विद्यार्थी 'सिनेमा का विद्यार्थी’ सत्र में उपस्थित सभा से सीधे रूबरू हुए. सिनेमा के विद्यार्थी यहाँ वास्तविक जिंदगी के उस्ताद नज़र आए. कैसे उन्होंने वेशभूषा और अपनी दिनचर्या से ही जिंदगी को कहानी से जोड़ा और तार्किक संदेश दे दिया कि साहित्य, सिनेमा और थिएटर कभी एक-दूसरे से जुदा नहीं हो सकते. आगे उन्होंने एक सवाल उछाला- 'हम लिखते क्यों हैं?' तमाम जवाबों के जरिये श्रोता जुड़े. फिर बोले कि लिखा इसलिए जाता है, ताकि दूसरों तक पहुंचे. हमारी सबकी एक कहानी है. हम सब अपनी जीवनी के लेखक हैं. जिंदगी के एक मोड़ पर मैं यहां आपसे मिला हूँ. कहानी भी ऐसे ही मिलती है. अगर हम अपना सकें, दिलों को छू सकें तो कहानी और कहानीकार की जीत है.
पाचवें दैनिक जागरण संवादी का समापन मुशायरा से हुआ. इस मुशयारे में नवाज देवबंदी, शीन काफ निजाम, मंज़र भोपाली, अना देहलवी, इकबाल अशहर, शकील शमसी शामिल हुए और संचालन आलोक श्रीवास्तव ने किया. इन नामचीन शायरों ने अपनी रचनाओं से शाम को यादगार बनाया।



