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'जितनी भी कहानियाँ हैं सभी स्वयं को दाँव पर रखकर लिखी गयी हैं' |
कवि व कथाकार हरिओम ने अपने वक्तव्य में कुछ महत्त्वपूर्ण बातें कहीं जैसे जो चीज़ें वे कविता, ग़ज़ल में नहीं कह पाते उन्होंने उसे अपनी कहानी में लिखा है। उनका मानना है कि उनकी कहानी समाज की कहानी है।
हरिओम ने आगे कहा कि'दास्तान-ए-शहादत' अलग तरह से लिखी गयी है। उन्होंने साफ कहा कि मैं सियासी कहानी लिखता हूँ, सियासत नहीं करता। जितनी भी कहानियाँ हैं सभी स्वयं को दाँव पर रखकर लिखी गयी हैं। ये ऊपरी तौर पर दिखेगा नहीं, किन्तु इसके भीतर उतरने पर पता लगता है मैं रचना कर्म के लिए नौकरी छोड़ने को तैयार हूँ। नौकरी ऐसी है कि कोई ले पायेगा? जो चीज़ आप दे नहीं सकते वो आप ले कैसे सकते हैं।
संवाद के इस कार्यक्रम में लीलाधर मंडलोई और वाणी प्रकाशन के प्रबन्ध निदेशक अरुण माहेश्वरी भी उपस्थित रहे।
~समय पत्रिका.