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स्मृति सभा का आगाज गिरीश कारनाड पर आधे घंटे की डॉक्युमेंटरी से हुई. |
स्मृति सभा का आगाज गिरीश कारनाड पर आधे घंटे की डॉक्युमेंटरी से हुई। इस डॉक्युमेंटरी में कारनाड द्वारा उनके शुरूआती दिनों के संघर्ष के साथ-साथ उनकी शिक्षा एवं नाट्य लेखन, रंगमंच, सिनेमा में अभिरुचि तथा रोड्स विश्वविद्यालय के अपने अनुभवों के बारे में बहुत विस्तार से दिखाया गया है।
अग्रणी साहित्यकार गिरीश कारनाड की हिंदी में सभी पुस्तकें राधाकृष्ण प्रकाशन से प्रकाशित हैं। राधाकृष्ण प्रकाशन, राजकमल प्रकशन समूह का सहयोगी संसथान है। कारनाड के चर्चित नाटक हैं तुग़लक, अग्नि और बरखा, ययाति, हयवदन, बलि, शादी का एल्बम, बिखरे बिम्ब और पुष्प, टीपू सुल्तान के ख्वाब, रक्त कल्याण आदि। कारनाड के दो नाटक प्रकाशनाधीन हैं।
गिरीश कारनाड के नाटकों के दौर को याद करते हुए एम.के. रैना ने कहा कि चाहे बाबरी मज्जिद विध्वंस, आपातकाल, धारवाड़ का ईदगाह और पत्रकार गौरी लंकेश हत्या मामला हो गिरीश कारनाड हमेशा इनके विरोध में खड़े रहे।
एनएसडी की पूर्व निदेशक त्रिपुरारी शर्मा ने कहा कि वह उनके नाटकों को पढ़ते और देखते हुए बड़ी हुई और उन्होंने बचपन से ही काफी प्रभावित किया। उन्होंने कारनाड को एक निर्भीक और हठी व्यक्ति बताया जो उनके लेखन और नाटकों में भी झलकता है।
नाट्य आलोचक देवेंद्र राज अंकुर ने कहा कि गिरीश कारनाड ने आगे आने वाले नाटककारों के लिये रास्ते बना दिए हैं और साथ ही उन्होंने यह बताया कि सांस्कृतिक जगत के होने के बावजूद हमें सामजिक जिम्मेदारियों से नहीं बचना चहिए और आगे आकर लड़ना चहिए।
वरिष्ठ रंगकर्मी और अस्मिता थिएटर ग्रुप के संस्थापक अरविन्द गौड़ ने भी गिरीश कारनाड के नाटकों पर प्रकाश डालते हुए उनकी प्रशंसा की। गौड़ ने कारनाड के व्यक्तित्व को महान बताया। साथ ही कहा कि कारनाड ने रंगमंच को नए आयाम दिए।
फिल्ममेकर अनवर जमाल ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि जब हम कोई पात्र या सीन बनाते थे तो गिरीश कर्नाड के बिना संभव नहीं हो पाता था और यह बात श्याम बेनेगल और सत्यजीत रे भी अच्छी तरह जानते थे।
राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक माहेश्वरी ने कहा कि गिरीश कारनाड लोगों पर सहज विश्वास करने वाले एवं पक्के उसूलों वाले व्यक्ति थे। यह सत्य है कि भारतीय साहित्य में दूसरा गिरीश कारनाड नहीं है।