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नीलिमा चौहान की पुस्तक 'ऑफ़िशियली पतनशील' पर परिचर्चा का आयोजन हुआ. |
पतनशील स्त्री वीनस ग्रह की अनसुलझी गुत्थी के बजाय सहज और मानवीय रूप में देखी जाने का ख़ालिस ईमानदार दावा पेश करने का फ़न रखती है। तहज़ीब के पोतड़े धोने-सुखाने-तहाने के फ़न तराशने में जिनका लगता नहीं है जी। देवी-दानवी के दंगल के दरमियान जो आपसे हँसाई जाती नहीं। मज़हबों, महकमों, मिन्नतों की म्यान में जिनकी चमक आपसे छिपाई जाती नहीं।
कार्यक्रम में मंच का संचालन करते हुए वाणी प्रकाशन ग्रुप की निदेशक अदिति माहेश्वरी गोयल ने लेखिका 'नीलिमा चौहान' का स्वागत किया। दर्शकों की तालियों के बीच पुस्तक का लोकार्पण किया गया। नीलिमा चौहान ने 'पतनशील' शब्द को विवेचित करते हुए कहा कि यह एक प्रकार का नज़रिया है, जिससे एक स्त्री इस संसार को, अपने आसपास के लोगों को देखती है। जिसमें महिला अपने ऊपर लगे तमाम लबादों को उतार फेंकती है, स्वयं को आज़ाद करती है। जहाँ वह 'देवी' नाम के पीछे के बोझ को भी दूर फेंकना चाहती है। उनकी नज़र में 'पतनशील' वास्तविक आदमी होना ही है।

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नीलिमा चौहान आगे बताती हैं कि बेशक ही इस पुस्तक में भाषा प्रस्तुति, शैली को लेकर नया प्रयोग किया गया है, 'नारीवाद' जैसे गम्भीर मुद्दे को नयी शैली में, मध्यम साहित्यिक मार्ग में अपनाना कहीं अधिक कठिन था। उनके अनुसार इसकी सफलता का निर्धारण पाठकों को करना है।